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आग, हवा, पानी का डर था / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
आग, हवा, पानी का डर था
हाँ, बेचारा कच्चा घर था
उसका अंबर ही अंबर था
एक दिशा थी और सफ़र था
आज यहाँ है एक हवेली
और यहीं 'होरी' का घर था
पाग़ल आँधी की नज़रों में
एक वही बूढ़ा छप्पर था
दोनों की ही मज़बूरी थी
मैं प्यासा था, वो सागर था !