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आग-सा मौसम हुआ जबसे ठिठुरती धूप का / विनय मिश्र

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आग-सा मौसम हुआ जबसे ठिठुरती धूप का
रंग ही कुछ और है तेवर बदलती धूप का ।

घिर गए हैं वो अँधेरों से यहाँ चारो तरफ़
काफ़िला लेकर चले थे जो चमकती धूप का ।

ज़िंदगी है शोर करते एक झरने का बहाव
मौत है साया पहाड़ों से उतरती धूप का ।

रोशनी का भ्रम चलो टूटा बहुत अच्छा हुआ
कारनामा एक ये भी है छिटकती धूप का ।

कुछ क़िताबों में पढ़ा था कुछ बुज़ुर्गों से सुना
याद है मुझको अभी तक चित्र हँसती धूप का ।

दाँव उसका, चाल उसकी, हैं उसी के फ़ैसले
खेल जारी है यहाँ इक चाल चलती धूप का ।

सिर्फ़ बाहर ही नहीं है अब इरादों की चमक
मेरे भीतर भी है मंज़र अब मचलती धूप का ।