Last modified on 7 नवम्बर 2009, at 21:47

आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे / बशीर बद्र

आग को गुलज़ार करदे, बर्फ़ को दरिया करे
देखने वाला तेरी आवाज़ को देखा करे

उसकी रहमत ने मिरे बच्चे के माथे पर लिखा
इस परिन्दे के परों पर आस्माँ सज़दा करे

एक मुट्ठी ख़ाक थे हम, एक मुट्ठी ख़ाक हैं
उसकी मर्ज़ी है हमें सहरा करे, दरिया करे

दिन का शहज़ादा मिरा मेहमान है, बेशक रहे
रात का भूला मुसाफ़िर भी यहाँ ठहरा करे

आज पाकिस्तान की इक शाम याद आई बहुत
क्या ज़ुरूरी है कि बेटी बाप से परदा करे

(अक्टूबर, १९९८)