भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आग को प्यास हुए प्यास को पानी न हुए / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आग को प्यास हुए प्यास को पानी न हुए 
वो ज़माने में मुहब्बत की कहानी न हुए

लाख समझाया उन्हें हाफ़िज़े<ref>याद-दाश्त (memory, capability to remember)</ref> की गलियों को  
शाम-ए-तन्हा वो कोई याद पुरानी न हुए

दिल का ये हाल छुपाए से कहाँ छुपता है 
ज़ख़्म पोशीदा<ref>गुप्त (hidden)</ref> मगर दर्द निहानी<ref>अन्दरूनी (internal, hidden)</ref> न हुए 

मेरी रुसवाई का उनसे है त’आल्लुक इतना 
हम कहानी तो हुए मेरी ज़बानी न हुए 

आइना देख के हर बार उनकी आँखों में
ख़ुद की तस्वीर हुए ख़ुद के म’आनी न हुए

जो हक़ीक़त हैं हर इक रोज़ बदल जाते हैं 
वो तसव्वुर<ref>कल्पना (imagination)</ref> ही भले हैं कि वो फ़ानी<ref>क्षणभंगुर (mortal, perishable)</ref> न हुए  

उम्र को ख़ूब निचोड़ा किए मक़सद के लिए 
वक़्त की रेत में हरकत की रवानी न हुए 

ख़ून के छींट फ़लक तक पे पड़े थे लेकिन 
वो ज़माने को तशद्दुद<ref> हिंसा, अत्याचार (violence, oppression)</ref> की निशानी न हुए 

मेरे अशआर बग़ावत पे उतर आए हैं 
क़ाफ़िया ले के भी हम मिसरा-ए-सानी<ref>शे’र की दूसरी लाइन (second line of the she’r)</ref> न हुए 

शब्दार्थ
<references/>