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आग तेज गुरसी की / राम सेंगर
Kavita Kosh से
चटकी हाँड़ी
आग तेज गुरसी की ।
गई ज़िन्दगी
रस्म रह गई
बस, मातमपुर्सी की ।
दूध राख में मिला
हिलकता शिशु
हम
खिड़की ।
नामशेष रह गई
उड़ी पिंजरा ले पिड़की ।
क्या बोलें
क्या करें बहस अब
पेट-पाँव-कुर्सी की ।
गई ज़िन्दगी
रस्म रह गई
बस, मातमपुर्सी की ।