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आग पर गीत लिखे / ब्रजमोहन
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आग पर गीत लिखे
अपने घर जलाकर के
हमने सच्चाई को
जाना है सब गँवाकर के
हर कोई भाग रहा
आज बिना पाँव के
रास्ते ग़र्क हुए
खाइयों में जाकर के
एक दीवार नहीं
सैकड़ों दीवारे हैं
आदमी फिर भी
मिल रहा है पास आकर के
एक हँसता है तो
रोते हैं सैकड़ों चेहरे
सैकड़ों लोग हँसे
देख तो हँसा कर के
इक बड़ी जेल को
क़ैदी-सी छटपटाहट है
ज़िन्दगी तोड़ दे अब
सींखचे हिला कर के
एक दिन आएगा
अपना भी मुस्कुराने का
एक दिन हम भी खड़े
होंगे सर उठा कर के