भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग में इसको अभी न डालो मिट्टी गीली है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
Kavita Kosh से
आग में इसको अभी न डालो मिट्टी गीली है।
पहले थोड़ी धूप दिखा लो मिट्टी गीली है।
व्यर्थ न जाने देना इसके भीतर का पानी,
चुक्कड़ गढ़ लो मूर्ति बना लो मिट्टी गीली है।
पानी सूखेगा तो ये पत्थर हो जायेगी,
तुख़्म-ए-मुहब्बत जल्दी डालो मिट्टी गीली है।
ज़्यादा अगर मिला तो ये कीचड़ हो जायेगी,
और न पानी इसमें डालो मिट्टी गीली है।
बेमिसाल कोमलता इसकी लाजवाब ख़ुशबू,
तन से मन से इसे लगा लो मिट्टी गीली है।