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आग लगने से धुआँ माहौल पर छाया तमाम / ओम प्रकाश नदीम
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आग लगने से धुआँ माहौल पर छाया तमाम ।
बात मामूली थी लेकिन ज़ह्न ने सोचा तमाम ।
चोट तो बस ऊँचे-ऊँचे पर्वतों पर की गई,
और नीचे ख़ून में लथपथ हुए दरिया तमाम ।
धीरे-धीरे बढ़ रही थी प्यार के दीपक की लौ,
एक झोंके ने तुम्हारे कर दिया क़िस्सा तमाम ।
मुझसे मिल कर किस क़दर होगी मसर्रत आपको,
इस तसव्वुर के सहारे कट गया रस्ता तमाम ।
शह हवा की पा के कुछ तिनके शरर से जा मिले,
रफ्ता-रफ्ता नज्र-ए-आतिश हो गया सहरा तमाम ।
एक झोंका मग़रिबी आँधी का आया और ’नदीम’
साफ़-सुथरे घर को मेरे कर गया गन्दा तमाम ।