भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग लगी कैसे / ब्रजमोहन
Kavita Kosh से
आग लगी कैसी पैसे ने भूख बढ़ाई रे
गन्ध आग में फेंक फूल का धुआँ बनाए रे
हत्यारों की आँखें जब कुछ देख न पाईं रे
सबने मिलकर अपने घर की बहू जलाई रे
बहू जली
सब ऐसे नाचे जैसे नाचे मौत
नए सिरे से
नई मौत की, फिर सुलगाई जोत
अन्धी आँखों के लालच में आँख गवाईं रे !