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आग सेंकते हुए लिखना / टोमास ट्रान्सटोमर / मोनिका कुमार
Kavita Kosh से
अभागे दिनों में
मेरे जीवन में बस तभी चमक आई
जब-जब तुम्हारे स्पर्श में स्नान किया
जैसे घटाटोप रात में
जैतून के पेड़ों के बीच
जुगनू जलते-बुझते हैं
जलते हैं, फिर बुझते हैं
इनकी उड़ान को केवल
झलकियों में ही
देखा जा सकता है
अभागे दिनों में
आत्मा सिकुड़ कर बेजान
बैठी रहती है
लेकिन देह सीधा तुम तक
पहुँच जाती है
रात्रि के आकाश ने चीत्कार किया
हमने चोरी से ब्रह्माण्ड का दोहन किया
और ज़िन्दा रहे
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मोनिका कुमार