भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग (दो) / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
यह आग है
तो फैलती क्यों नहीं?
यह आग है
तो मैं पानी नहीं हूँ
यह आग है
तो मैं घास हूँ
यह आग है
तो मैं हवा हूँ
यह आग है
तो मैं आग हूँ
आग फ़ैलती क्यों नहीं?
यह आग है
तो सीता जलती क्यों नहीं?