आग / जयप्रकाश कर्दम
जहां देखो वहां आग है
जिधर देखो उधर आग है
हर तरफ आग ही आग है
यहां आग, वहां आग
आग में आग, पानी में आग
हवन की आग, पवन की आग
दंश की आग, दमन की आग
ज्ञान की आग, अज्ञान की आग
मान की आग, अपमान की आग
क्षुधा की आग, सुधा की आग
भक्ति की आग, भगवान की आग
काम की आग, क्रोध की आग
हिंसा की आग, प्रतिशोध की आग
अलगाव की आग, अहंकार की आग
आक्रोश की आग, प्रतिकार की आग
बंधुवापन की आग, बेगारी की आग
अभाव की आग, लाचारी की आग
खेतों की आग, खलिहानों की आग
बस्तियों की आग, श्मशानों की आग
बाहर की आग, अंदर की आग
थार की आग, समुंदर की आग
सुलगती हुई आग, दहकती हुई आग
जलती हुई आग, जलाती हुई आग
इस आग से कोई बचा नहीं है
इस आग में कोई समूचा नहीं है
यह आग जब विस्तार पाती है
एक बड़े यज्ञकुण्ड में बदल जाती है
जो पशुओं की नहीं
मनुष्यों की बलि खाती है
बेलछी, खैरलांजी और मिर्चपुर
इस आग के सबसे बड़े निशान हैं
फूलन और भंवरी इस आग की पहचान हैं
आग, जो मनुष्यता के माथे पर कलंक है
जिसके कारण आज तक
समाज का एक हिस्सा अपंग है।