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आग / विजेन्द्र अनिल
Kavita Kosh से
अतीत को
वर्तमान से जोड़े
भविष्य हमारा है
हवा को
पूरब की ओर मोड़े
भेड़िए मान्द से
बाहर निकल रहे हैं
मेमनों की हिफ़ाजत में
आओ
रतजगा करें
अन्धेरे को चीरने के लिए
रोशनी ज़रूरी है
और रोशनी के लिए
आग — सिर्फ़ आग।