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आघात / महेन्द्र भटनागर

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मैंने ...

जीवित रखा तुम्हें —

अतः तुम्हारी

जीवित गलित लाश भी

ढोऊंगा !

मूक विवश ढोऊंगा !

विश्वासों का ख़ून किया

तुमने,

अरमानों को

जलती भट्ठी में भून दिया

तुमने !

छल-छद्म का

सफल अभिनय कर,

जीवन के हर पल में

दर्द असह भर !



प्यारा नहीं बना,

हत्यारा नहीं बना !

अरे ! नहीं छीना जीने का हक़;

यदपि हुआ बेपरदा शक,

हर शक !


जीवित रखा जब

नरकाग्नि में दहूंगा

बन संवेदनहीन

सब सहूंगा !

पहले या फिर

सब को

चिर-निद्रा में सोना है,

मिट्टी-मिट्टी होना है !


ओ बदक़िस्मत !

फिर, कैसा रोना है ?