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आचरण की संहिताओं की तरह / शिव ओम अम्बर

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आचरण की संहिताओं की तरह,
हम जिये जातक-कथाओं की तरह।

वेदनाएँ वक्ष से लिपटी रहीं,
वृक्ष से लिपटी लताओं की तरह।

मौन के निस्सीम नीलाकाश में,
शब्द हैं नीहारिकाओं की तरह।

आपके संस्पर्श चित्रित हैं अभी,
चेतना पे अल्पनाओं की तरह।

प्राण ये तिल-तिल तमिस्रा में दहे,
आत्मयाजी वर्तिकाओं की तरह।

चन्द ग़ज़लें भर रहीं आँचल दिये,
वृद्ध जननी की दुआओं की तरह।