भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आछौ दूध पियौ मेरे तात / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग गौरी


आछौ दूध पियौ मेरे तात ?
तातौ लगत बदन नहिं परसत, फूँक देति है मात ॥
औटि धर्‌यौ है अबहीं मोहन, तुम्हरैं हेत बनाइ ।
तुम पीवौ, मैं नैननि देखौं, मेरे कुँवर कन्हाइ ॥
दूध अकेली धौरी कौ यह, तनकौं अति हितकारि ।
सूर स्याम पय पीवन लागे, अति तातौ दियौ डारि ॥


भावार्थ :-- (मैया कहती है-) `मेरे लाल! बड़ा अच्छा दूध है पी लो ।' गरम लगता है, इससे मुख से छूते नहीं-माता फूँक देकर शीतल करती है । (वह कहती है-)`मोहन! इसे अभी-अभी तुम्हारे ही लिये बनाकर (भली प्रकार) उबालकर रखा है । मेरे कुँवर कन्हाई! तुम पीओ और मैं अपनी आँखों (तुम्हें दूध पीते ) देखूँ । वह केवल धौरी का दूध है, शरीर के लिये अत्यन्त लाभकारी है । सूरदास जी कहते हैं- श्यामसुन्दर दूध पीने लगे; किंतु वह अत्यन्त गरम था, इससे गिरा दिया ।