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आजकल हर साँस ही उसकी बयानी हो गयी / आनंद कुमार द्विवेदी

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आजकल हर सांस ही उनकी बयानी हो गयी
मेरी हर धड़कन मोहब्बत की कहानी हो गयी

मेरी खुशियाँ, मेरी बातें, मेरे सपने, मेरे गम
मेरी हर इक बात अब उनकी निशानी हो गयी

सादगी मासूमियत की बात मैंने की मगर
उन तलक पहुंची तो कुछ की कुछ कहानी हो गयी

चाँद उसका रात उसकी और वो नाचीज़ की
पहले वो शबनम लगी फिर रातरानी हो गयी

आजकल ख्वाबों में भी इक ख़्वाब आता है मुझे
मेरी उनकी आशिकी सदियों पुरानी हो गयी

उनकी बाँहों में मरूं या उनकी राहों में मरूं
फर्क क्या है जब उन्ही की जिंदगानी हो गयी

मैं चला, ‘आनंद’ को यह बात कहनी है मुझे
देख तुझपे क्या खुदा की हरबानी हो गयी