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आज़माए को आजमाएँ क्यों / चाँद शुक्ला हदियाबादी
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हम उन्हें फिर गले लगाएँ क्यों
आज़माए को आजमाएँ क्यों
जब यह मालूम है कि डस लेगा
साँप को दूध फिर पिलाएँ क्यों
जब कोई राबता नहीं रखना
उनके फिर आस -पास जाएँ क्यों
हो गया था मुग़ालता इक दिन
बार -बार अब फ़रेब खाएँ क्यों
जब के उनसे दुआ- सलाम नहीं
मेरी ग़ज़लें वो गुनगुनाएँ क्यों
"चाँद" तारों से वास्ता है जब
हम अँधेरों को मुँह लगाएँ क्यों