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आज़ादी की स्वर्ण जयंती पर / सैयद शहरोज़ क़मर
Kavita Kosh से
ऐसे समय
सजाया जाता है सी० पी० और नरीमन
जब शहर के हर कोने में
अट्टाहस करता है कालाहाण्डी
ऐसे समय
होती हैं मेंहदी और रंगोली स्पर्धाएँ
जब हथेलियों पर दौड़ने को
आतुर हैं रूपकँवर
ऐसे समय महारानी को दिया जाता है
रेशमी जोड़ा जब सुदूर कोंटा में
अस्पताल लाते दम तोड़ती है
एक सत्रह वर्षीय गर्भवती
नहीं दौड़ पाती यह सूचना इण्टरनेट पर
ऐसे समय मुअज़्ज़िन पुकारता है
'हय्या अलल फ़लाह' जब दूर
मस्जिद में गोलियों से
भून दिए जाते हैं
ग्यारह आदमी
ऐसे समय
आती हैं पुरखों की आत्माएँ
जब दादी की खाँसी पर
लगाई जा रही होती है पाबन्दी
और घर का बड़ा आँगन में
खड़ी करता है दीवार।
13.08.1997