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आज़ादी / मलखान सिंह

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वहाँ वे तीनों मिले
धर्मराज ने कहा पहले से
दूर हटो —
तुम्हारी देह से बू आती है
सड़े मैले की
उसने उठाया झाड़ू
मुँह पर दे मारा ।

वहाँ वे तीनों मिले
धर्मराज ने कहा दूसरे से
दूर बैठो —
तुम्हारे हाथों से बू आती है
कच्चे चमड़े की
उसने निकाला चमरौधा
सिर पर दे मारा

वहाँ वे तीनों मिले
धर्मराज ने कहा तीसरे से नीचे बैठो —
तुम्हारे बाप-दादे
हमारे पुस्तैनी बेगार थे
उसने उठाई लाठी
पीठ को नाप दिया

अरे पाखण्डी तो मर गया !
तीनों ने पकड़ी टाँग
धरती पर पटक दिया
खिलखिलाकर हँसे तीनों
कौली भर मिले
अब वे आज़ाद थे।