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आज़ादी / हुम्बरतो अकाबल / यादवेन्द्र
Kavita Kosh से
चील, बाज और कबूतर
उड़ते-उड़ते
बैठ कर सुस्ताते हैं
गिरजों और महलों पर
बेख़बर, बेपरवाह
बिलकुल उसी तरह
जैसे
वे बैठते हैं चट्टानों पर
वृक्षों पर ...या ऊँची दीवारों पर...
इतना ही नहीं
वे उनपर गिराते हैं
पूरी आजादी से अपनी बीट भी
उन्हें मालूम है
कि ख़ुदा और इन्साफ़
दोनों का ताल्लुक
ऊपरी दिखावे से नहीं
दिल से है...।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र