आज़ाद गुरदासपुरी / भीगी पलकें / ईश्वरदत्त अंजुम
मुझे ये जान कर मसर्रत हुई कि जनाब ईश्वर दत्त अंजुम का शेरी मजमूआ "भीगी पलकें" शाया होने जा रहा हैं जनाब ईश्वर दत्त अंजुम साहिब किसी तआरूफ के मुहताज इस लिए नहीं है कि मौसूफ़ मोतबर उस्ताद शायर जनाब राजेन्द्र नाथ रहबर क्व बिरादरे-अकबर तो हैं ही, इस के बावजूद बज़ाते-खुद खुश-गो वा खुश फ़िक्र जाने पहचाने शायर हैं। उन्होंने उर्दू शेरी रिवायत की उस खास रौ को आगे बढ़ाने की कोशिश की है जिस में मज़्मून-आफरीनी और ज़बान की लताफतें जल्वागर होती हैं और ये चीज़ हर किसी को आसानी से मयस्सर नहीं आती। वो खुद फरमाते हैं:-
-मेरी फ़िक्र-ए-सुख़न के शहबाज़ो
खुद को ऊँची उड़ान में रखना
देखा आप ने अंजुम साहिब ग़ज़ल का कितना सुथरा मज़ाक़ रखते हैं। मौसूफ़ ने मंदर्जा-बाला शेर की तख़लीक़ में अपनी जिस नाज़ुक खयाली और शाइस्ता-मिज़ाजी से शेर की सूरत में जो पैकर ( आकार) तराशा है वो लाइके-तहसीन (प्रशंसनीय) भी है और क़ाबिले-सद-सताइश (श्लाघा योग) भी।
ईश्वर दत्त अंजुम साहिब के अशआर पढ़ कर जदीद शायरी की पैदा-कर्दा बद-गुमानियां दूर हो जाती हैं क्योंकि उन्होंने अपने अशआर को किसी बात, किसी मक़सद के तहत तख़लीक़ (निर्माण) कर के और सजा सँवर के आप की ज़ियाफते-तबअ ( मनोरंजन) के लिए आप की खिदमते-अक़दस में पेश किया है।
जब कि आज के बेशतर शोरा हज़रात खुद को हर क़ैद-ओ-बंद से आज़ाद मुतसव्वुर ( ख़याल) करते हुए ऐसी ऐसी अजीबो-गरीब मूशीगाफियों के मुतर्किब (कर्ता) हो रहे हैं कि उन के कलाम को पढ़ कर दिल को कैफो-सुरूर के एहसास की बजाये कोफ़्त (घुटन) महसूस होने लगती है लेकिन ईश्वर दत्त अंजुम साहिब ने आने अशआर में ख़याल की नुदरत (नवीनता) परवाज़े-तख्ययुल (कल्पना की उड़ान) की बुलंदी, ज़बान की शिरीनी (मिठास) ताज़गी, शिगुफगी, नगमगी, बर्जस्तगी को बरूए-कार (काम में) ला कर अंदाज़े-बयान को इस क़दर पुर-कशिश (आकर्षक) और पुर-असर बना दिया है कि ये शेरी मजमूआ "भीगी पलकें" बजा तौर पर इस बात का हक़ रखता है की इसे क़द्र की नज़र से देखा जाये, पढ़ जाये और जनाब ईश्वर दत्त अंजुम की क़द्र-दानी की जाये।
मैं जनाब ईश्वर दत्त अंजुम साहिब की पेशगी मुबारकबाद देता हूँ और दुआ करता हूँ कि मौसूफ़ का ये शेरी मजमूआ मक़बूल और सरसब्ज़ हो।
आमीन!