आज़ाद हुआ बस लाल क़िला / लक्ष्मी नारायण सुधाकर
सामन्तों-पूँजीपतियों की जो मिली-भगत से काम हुआ
सत्ता-परिवर्तन का सौदा करने पर क़त्ले-आम हुआ
हिंसा-नफ़रत पर रखी गयी आज़ादी की आधारशिला
आज़ाद हुआ बस लाल क़िला
दो-चार वसन्त के फूल खिले कहते ऋतुराज वसन्त हुआ
ठूँठों पर नज़र नहीं डाली जिनके जीवन का अन्त हुआ
परकटे परिन्दों से पूछो जिनका धू-धू कर नीड़ जला
आज़ाद हुआ बस लाल क़िला
पीढ़ी-दर-पीढ़ी बीत गयी बँधुआपन में बेगारी में
खप गयी उम्र धन्नासेठों की टहल में तावेदारी में
तुम कहते आज़ादी आयी हमको न अब तक पता चला
आज़ाद हुआ बस लाल क़िला
आज़ादी आयी महलों में झोपड़पट्टी में अन्धकार
भूखे-प्यासे तन से जर-जर कंकालों का है चीत्कार
शोषक ने सिंहासन पाया शोषित को नहीं स्वराज मिला
आज़ाद हुआ बस लाल क़िला
फाँसी के तख़्ते पर चढ़कर जिस आज़ादी के पढ़े छन्द
'बिस्मिल' की वह आज़ादी तो कोठी-बँगलों में हुई बन्द
भगत सिंह-शेखर-सुभाष के अरमानों को धूल मिला
आज़ाद हुआ बस लाल क़िला