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आज़ाद हुए फिर भी हम आज़ाद नहीं / रतन पंडोरवी
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आज़ाद हुए फिर भी हम आज़ाद नहीं
हासिल है खुशी इस पे भी दिल शाद नहीं
ज़ाहिर में तो आबाद नज़र आते हैं
बातिन में हम ऐसा कोई बर्बाद नहीं।
दुनिया में कोई अद्ल की मीज़ान नहीं
मासूम-ओ-ख़ताकार की पहचान नहीं
अच्छों को सज़ा और बुरों को इनआम
भगवान भी शायद अब वो भगवान नहीं।
मज़लूम गिरिफ्तारे-फुगां है या रब
ज़ालिम का मगर सिक्का रवां है या रब
कहते हैं कि तू आदिल-ओ-मुंसिफ है मगर
इंसाफ़ तिरा आज कहां है या रब।
तज़वीर है, धोखा है, रिया है पैसा
इस पर भी दिल-ओ-जां से सवा है पैसा
इंसान बिका जाता है इस की ख़ातिर
सच ये है कि दुनिया का ख़ुदा है पैसा।