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आजा़दी का जश्न / कल्पना पंत
Kavita Kosh से
उत्तर पश्चिम के आकाश में
घिर आए हैं गिद्ध
उनके बड़े बड़े डैने
सूरज को ढक रहे हैं
साथ-साथ उड़ रहे हैं
शिकारी पक्षी
आज़ाद पखेरूओं के दल में
हाहाकार है
शिकारियों ने
उनमें से अधिकांश के
पंख काट डाले हैं
धरती पर गिरते
वे गिद्धों की नज़र में हैं
नन्हे -नन्हे चिंचियाते स्वर
करुण आर्तनाद में तब्दील हो रहे हैं
यह सभ्यता की कहानी है
और हम बाईसवीं सदी में हैं
आओ दोस्तो !
हम आज़ादी का जश्न मनाएँ ।