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आजुर्दगी ..... / हरकीरत हकीर

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बसंत भी है .....चांदनी भी ....कोयल की कूक भी .....नही है .....तो वो नज़र ...।! पेश है ये नज़म ....

सामने खुला आसमां औ'

बे रौनक सी ये चाँदनी
जैसे कह रही हो कोई
दर्द भरी कहानी

मौन निशब्द ये तारे
हैं कवियों की सुंदर कल्पना
पर छुपी इनके रूख पर
आजुर्दगी* किसी ने न जानी

शब क्यूँ है रोती
अंधेरे की ओट में
शबनम की ये बूंदें
कहती किसके गम की कहानी ?

कौन जाने ये बुलबुल
गा रही गीत खुशी के ?
या दर्द- ए -फ़िराक* में
कह रही कथा जुबानी ?

जाने आहटें ये कैसी
रातों में हैं सबा की हैं
या किसी तड़पती रूह की
कथा है कोई पुरानी

राहत - ए-दौर को हुई मुद्दतें
सुर्ख रंग पडा अब ज़र्द है
हर एक शख्स में मुझको
नजर आती अपनी ही कहानी ....!!

१) आजुर्दगी-रंज
२)दर्द- ए -फ़िराक - वियोग का दुःख