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आजु आली माथे ते सुबेंदी गिरै बार बार / प्रहलाद

आजु आली माथे ते सुबेंदी गिरै बार बार ,
मुख पर मोतिन की लरी लरकति है ।
धरतहि पग कील चूरे की निकरि जात ,
जब तब गांठि जूरेहू की भरकति है ।
जानि न परत पहलाद परदेस पियु ,
उससि उरोजन सोँ आँगी दरकति है ।
तनी तरकति कर चूरी करकति अंग ,
सारी सरकति आँखि बाँई फरकति है


प्रहलाद का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।