आजु उठि भोर बृषभानु की नंदिनी,
फूल के महल तें निकस ठाढ़ी भई।
खसित सुभ सीस तें कलित कुसुमावली,
मधुप की मंडली मत्त रस ह्वै गई।
कछुक अलसात सरसात सकुचात अति,
फूल की बास चहुँ ओर मोदित छई।
दास ’हरिचंद’ छबि देखि गिरिदर लाल,
पीत-पट लकुट सुधि भूलि आनंद-मई॥