आजु तौ बधाइ बाजै मंदिर महर के / सूरदास
(माई) आजु तौ बधाइ बाजै मंदिर महर के ।
फूले फिरैं गोपी-ग्वाल ठहर ठहर के ॥
फूली फिरैं धेनु धाम, फूली गोपी अँग अँग ।
फूले फरे तरबर आनँद लहर के ॥
फूले बंदीजन द्वारे, फूले फूले बंदवारे ।
फूले जहाँ जोइ सोइ गोकुल सहर के ॥
फूलैं फिरैं जादौकुल आनँद समूल मूल ।
अंकुरित पुन्य फूले पाछिले पहर के ॥
उमँगे जमुन-जल, प्रफुलित कुंज-पुंज ।
गरजत कारे भारे जूथ जलधर के ॥
नृत्यत मदन फूले, फूली, रति अँग अँग ।
मन के मनोज फूले हलधर वर के ॥
फूले द्विज-संत-बेद, मिटि गयौ कंस-खेद ।
गावत बधाइ सूर भीतर बहर के ॥
फूली है जसोदा रानी, सुत जायौ सार्ङ्गपानी ।
भूपति उदार फूले भाग फरे घर के ॥
भावार्थ :--(सखी) आज तो व्रजराज के भवन में बधाई बज रही है । गोपियाँ और गोप उत्फुल्ल हुए रुक-रुककर (आनन्दक्रीड़ा करते) घूम रहे हैं। गायें गोष्ठों में आनन्दमग्न घूम रही हैं, गोपियों के अंग-अंग पुलकित हैं । आनन्दोल्लास से सभी वृक्ष फूल उठे और फलित हो गये हैं । द्वार पर वन्दीजन प्रफुल्लित फूलों के बन्दनवार बाँधे गये हैं, आज गोकुल नगर में जो जहाँ है, वहीं प्रफुल्लित हो रहा है । यदुकुल के लोग आनन्द से उल्लसित घूम रहे हैं, उनके पिछले जन्मों के पुण्य आज अपने मूल के साथ अंकुरित होकर फूल उठे हैं (उनके जन्म-जन्मान्तर के पुण्यों का फल उदय हो गया है )। यमुना का जल उमंग में उमड़ रहा है, कुण्जों के समूह प्रफुल्लित हो गये हैं, मेघों के बड़े-बड़े काले-काले समूह गर्जना कर रहे हैं, कामदेव उल्लसित होकर नाच रहा है, रति के अंग-अंगउल्लसित हैं (कि अब मेरे पति अनंग को शरीर प्राप्त होगा।) वे श्रीकृष्णचन्द्र के पुत्र बन सकेंगे | बड़े भाई श्रीबलराम जी के चित्त की सभी अभिलाषाएँ उत्फुल्ल हो गयी (पूर्ण हो गयी) हैं । ब्राह्मण, सत्पुरुष और वेद उल्लसित हैं, उनका कंस से होने वाला भय दूर हो गया है । सूरदास जी कहते हैं कि सभी (घरों से) बाहर निकल कर बधाई गा रहे हैं । श्रीयशोदारानी प्रफुल्लित हो रहीं हैं, साक्षात् शार्ङ्गपाणि श्रीहरि उनके पुत्र होकर प्रकट हुए हैं । उदार व्रजराज प्रफुल्लित हैं, आज उनके भवन का सौभाग्य फलशाली हो गया (भवन में पुत्र आ गया) है ।