भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आजु देखली हम एक रे सपनमा / मगही

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आजु देखली हम एक रे सपनमा।
सूतल हली<ref>थी</ref> हम अपन कोहबरिया॥1॥
ओने से<ref>उधर से</ref> अयलइ बाँके रे सिपहिया।
पकड़ि बाँधल मोरा पिया सुकमरिया॥2॥
छोडूँ छोडूँ दुलहा हे हमरो सिपहिया।
बिहरे<ref>विदीर्ण हो रही है, फट रही है</ref> मोरा देखि बजर के छतिया॥3॥
जो तोहिं देहीं धानि बाला<ref>कम उम्र की, कमसिन</ref> रे जोबनमा।
छोड़िए देऊँ<ref>छोड़ दो</ref> तोहर पिया सुकमरिया॥4॥
पिया देखि देखि मोरा बिहरे करेजवा।
नयना ढरे जइसे बरसे समनमा॥5॥
टूटि गेलइ एतना में हमरा के नीनियाँ<ref>नींद</ref>।
झरे<ref>झरने</ref> रे लागल जइसे झहरे समनमा<ref>श्रावण महीना</ref>।

शब्दार्थ
<references/>