Last modified on 9 अप्रैल 2013, at 18:07

आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ / हिन्दी लोकगीत

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ -२
उसकी दादी ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके बाबा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया

आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ -२
उसकी ताई ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके ताऊ ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया

आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ -२
उसकी मम्मी ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके पापा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया

आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ -२
उसकी बुआ ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके फूफा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया

आज अँगन मेरा सूना, बन्नी तो मेरी पाहुनियाँ -२
उसकी चाची ने ऐसा पाला कि ऐसा पाला कि नैन बिच पूतरिया
उसके चाचा ने ऐसा निकाला कि ऐसा निकाला कि जल बिन माछरिया