आज अम्बर है बहुत रूठा हुआ ।
लग रहा मौसम बहुत सहमा हुआ।।
बढ़ रहे हैं पीढ़ियों में फासले
जिंदगी का दौर है बदला हुआ।।
फूल के एहसास जागे जब दिखा
एक भँवरा दूर पर उड़ता हुआ।।
पूछते हैं पात कुम्हलाते हुए
है उमस इतनी हवा को क्या हुआ।।
यूँ कई मेले ज़माने में मगर
आ यहाँ हर आदमी तन्हा हुआ।।
पीर हम किससे कहें है ग़ैर सब
एक आँसू आँख में ठहरा हुआ।।
छाँव पाने को तरसते अब सभी
जो बगीचा था यहाँ वो क्या हुआ।।