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आज का शेर / महेश रामजियावन

यहां बिहड़ वन नहीं
वनों में खुंखार जानवर नहीं
भेड़-बकरियों को चीते व शेरों का भय नहीं

यहां तो
शहरों, गांवों और कस्बों में उगने लगे हैं
-झाड़-झंखाड़!
-शेरों के पंजे!
 इन जंगलों में केवल जानवर ही खुंखार नहीं
 भेड़-बकरियों को चीते व शेरों का भय नहीं

क्योंकि आज के शेर
जंगल घाटी व अंधेरी गुफाओं में नहीं रहते

-शहरों
-गांवों
-क्स्बों
और बाज़ारों में

शरीफ आदमी का नकाब पहनकर
घूमने लगे हैं गली-गली
भेड़ों और बकरियों के कंधे से कंधा मिलाकर
बांहों में बांहें झटकाकर ।

आज के शेर !
फ्रीज में रखे भेड़, मुरगी, अण्डे व
ओक्टोपस आदि ही नहीं खाते
बल्कि आदमी के कच्चे गोश्त
और फ्राइड हॉट-डोग भी खाने लगे हैं
होटलों में
जेब में मास्टर कार्ड लिये
कोट-टाई पहनकर
आंखों में रंगीन चश्मा लगा कर
छूरी-काँटे से शानदार खाना खाते हैं
एयर कण्डिशन बंगले में रहने लगे हैं
मर्सेडेस व रोल्सरॉय पावर स्टियरिंग
गाड़ियों में घूमने लगे हैं
मोबाइल फोन से बीबियों का हालचाल पूछते हैं
और फाइव स्टार होटलों में
पार्टियां मनाते हैं ।
शिवास रिगल की चूस्कियां लेकर
आयात-निर्यात पर भाषण देते हैं
आई एम एफ और सेमदेक्स-सेमसेक्स की बातें करते हैं ।

शेर !
यहां रहते हों या कहीं और
शेर !
गुफे में रहते हों या कहीं और
शेर !
शहरों, गांवों और कस्बों में
रहते हों या कहीं और
शेर !

शेर होते हैं !
मांस ही खाते हैं
घास या फल नहीं खाते हैं ।
शेर !
खुले में भटकते हों
पिंजड़े में बंद रहते हों
या शहरों-बंगलों में !
पर उनके पंजों में ताज़े मांस चीरने
और गर्म रक्त पीने की
प्यास बनी रहती है
शेर !
शेर ही होते हैं !