आज की अरण्य सभा को
अपवाद देते हो बार बार,
दृढ़ कण्ठ से कहते जब अहंकृत आप्तवाक्य-वत्
प्रकृति का अभिप्राय है, ‘नवीन भविष्यत्
गायेगा विेरल रस में शुष्कता का गान’
वन-लक्ष्मी न करेगी अभिमान।
जानते हैं सभी इस बात को-
जिस संगीत के रस में
होते ही प्रभात के
आनन्द में मत्त होती आलोक सभा
वह तो हेय है
और अश्रद्धेय है,
प्रमाणित करने को अपनी बात
ऐसे ही बराबर बढ़़ते ही चलेंगे वे।
वन के विहंग प्रतिदिन
संशय विहीन
चिरन्तन वसन्त की स्तव गाथा से
आकाश करेंगे पूर्ण
अपने आनन्दित कलरव से।
‘उदयन’
प्रभात: 30 नवम्बर