आज की परिभाषा / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
इंसान ने आज गढ़ ली परिभाषा
खुद की
वो बन गया है ‘उत्पाद’
बिक रहा है बाजार में
चाहे आटो एक्सपो हो या
किसी नामी कंपनी का
अंडरवियर
उसे अब शरम नहीं
वैसे भी
कोणार्क की मूर्तियां हो
या
खजुराहो
की
क्या फर्क पड़ता है!
संबंधों में ही
कड़वाहट घुल चुकी है
चाय की मिठास भूले लोग
चांदनी चौक से
कतराने लगे हैं
लेस्बियन/जिगे़लो के
इस जंजाल में
अंतरजाल की चमक में
अपना पड़ोस और
अपनी अहमियत
तलाशते हम
गुगल युगीन लोग
उस दिन के इंतजार मंे हैं
जब बच्चों के नाम होने लगेंगे
याहू मैसेंजर
ट्वीटर या फेसबुक!
नई पीढ़ी की दुल्हनें
ब्याह संग लाने लगंेगी
अपने नवजात शिशु
उसे दहेज में माँ-बाप देंगे
लेपटॉप, नोटबुक और
अत्याधुनिक मोबाईल
एंड्रॉयड फोन
और हम आप
तस्वीरों में टंगे
अपने नौनिहालों की
हरकतों पर
तमाशाबीन बनकर
चुपचाप देखेंगे
इस जुनूनी हलचलों को
जिस पर हमारा कोई वजूद
नहीं चलेगा!
हमारी तस्वीरों पर
उनका हक होगा
वे जब चाहे
किसी को भी ‘टैग’
कर देंगे
कोई ना चाहते हुए भी
हमें ‘लाईक’ कर देगा
इच्छा हुई तो
कमेंट भी दे देगा
हमारी बला से
और क्या