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आज की रैन मुझ कूँ ख्व़ाब न था / वली दक्कनी
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आज की रैन मुझ कूँ ख्व़ाब न था
दोनों अँखियाँ में ग़ैर-ए-आब न था
ख़ून-ए-दिल कूँ किया था मैंने नोश
और शीशे मिनीं शराब न था
आज की रैन दर्द-ओ-ग़म म्याने
कोई मुझ सार का ख़राब न था
मजलिसे-शोख़ में मुझे कुछ भी
हुज्जत-ए-वस्ल कूँ जवाब न था
टुक तकल्लुफ़ सूँ आके मिल जाता
हक़ के नज़दीक क़छ अजा़ब न था
माह अंधकार था कि ज्यूँ मेरे
पास मेरा जो माहताब न था
आह पर आह खींचता था मैं
आज की रात कुछ हिसाब न था
क्या सबब था जो ख़ुद नहीं आया
कि उसे मुझ सिती हिजाब न था
गिला-ए-शोख़ ऐ 'वली' करना
हर किसी कन तुझे सवाब न था