आज कुहरा पड़ रहा है / रामकृपाल गुप्ता
यह कुहरे में छिपा-छिपा सा
भूतल पर आया विहान
पर, हाय न हम-तुम देख सके
प्राची का मृदु मधुर गान
तम चीर रश्मियों का अनुपम उल्लास
और उषा की मधु मुस्कान
तनिक तिरछी चितवन से
जगती तल का आनंदित हो जाना।
जीवन के अनुरागऔर उल्लास ह्यस
वासंती गीतों में डूबा मानवता का अपमान
यह कुहरे में छिपा-छिपा सा
भूतल पर आया विहान
इस तनिक दूर से वृक्षों में खेतों में
मेघों का आकाश व्याप्त झीना-झीना सा
उस पार बहुत की दूर चमकता है
धुँधला-सा दिनमणि
जो करता है सारे जग को दीप्तमान
यह है विधान विधि का कैसा गंभीर
अरे देख रे मानव
यह झिलमिल आकाश उड़ रहा है
नन्हीं-नन्हीं रससिक्त बूँद-सा बनकर
और तनिक हो दूर मुग्ध बेसुध-सी वसुधा
दीख पड़ रही लेती इस मधुर मिलन का।
क्या तुममें है शक्ति
वहाँ बस वहाँ जो तुमसे
दस-बीस हाथ ही दूर चले जाने की
कैसी माया और कौन-साखेल
दूर हमसे कुछ हटकर सारे
जग को ढके हुए धुँधला वितान
यह कुहरे में छिपा-छिपा सा
भूतल पर आया विहान
मुक्त अनिल पर आज सवारी कसकर
बाँध रही है क्यों अनंत की सीमा
यें नन्हीं, बिल्कुल नन्हीं-नन्हीं
गर्जन करने वाली मेघों की टुकड़ी
ऊँचाई से गिरकर एक साथ मिल
चाह रही क्या करना।
अपने ही रंग में रंगती हैं मगन हुई-सी
भू की क्षुप की
लहराते झूमते हुए फूलों पौधों की
सबकी हरियाली
और खिलते यौवन-सी प्राची की अरूणाई
वाह, धन्य तुम्हारा सराहनीय है साहस
और धन्य तुम
धन्य तुम्हारा दृढ़ अक्षुण-सा मान
यह कुहरे में छिपा-छिपा सा
भूतल पर आया विहान।