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आज के संदर्भ में कल / प्रताप सहगल
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सड़कों पर घूमते हुए
एकलव्य
खोज रहे हैं द्रोण को
और द्रोण न जाने किन अन्धी
गुफ़ाओं में
या यूतोपियाई योजनाओं में
खोया हुआ ख़ामोश है ।