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आज को छोड़ दिया जो तो मेरा कल फिसला / राम गोपाल भारतीय

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आज को छोड़ दिया जो तो मेरा कल फिसला
रेत की तरह मेरे हाथ से हर पल फिसला

मैं भटकता ही रहा ग़म के बियाबानों में
जब भी सर से मेरे माँ-बाप का आँचल फिसला

लोग कहते हें इसे दर्द का रिश्ता शायद
मैं भी रोया जो तेरी आँख से काजल फिसला

इस तरक़्क़ी में भी क्या-क्या न गँवाया हमने
शहर से छाँव गई गाँव से पीपल फिसला

चाँद छूने के लिए जिसने वतन को छोड़ा
आसमाँ छू न सका और धरातल फिसला

तू भी धरती की तरह प्यास लबों पर रखना
हाँ वही प्यास जिसे देख के बादल फिसला