भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज को छोड़ दिया जो तो मेरा कल फिसला / राम गोपाल भारतीय
Kavita Kosh से
आज को छोड़ दिया जो तो मेरा कल फिसला
रेत की तरह मेरे हाथ से हर पल फिसला
मैं भटकता ही रहा ग़म के बियाबानों में
जब भी सर से मेरे माँ-बाप का आँचल फिसला
लोग कहते हें इसे दर्द का रिश्ता शायद
मैं भी रोया जो तेरी आँख से काजल फिसला
इस तरक़्क़ी में भी क्या-क्या न गँवाया हमने
शहर से छाँव गई गाँव से पीपल फिसला
चाँद छूने के लिए जिसने वतन को छोड़ा
आसमाँ छू न सका और धरातल फिसला
तू भी धरती की तरह प्यास लबों पर रखना
हाँ वही प्यास जिसे देख के बादल फिसला