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आज खुद से पशेमाँ हुए जा रहे / रंजना वर्मा
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आज खुद से पशेमां हुए जा रहे।
मोती-सी जिंदगानी जिए जा रहे॥
साथ छूटा है जब से तुम्हारा सनम
हर खुशी हम जहर-सी पिए जा रहे॥
हैं अँधेरे बहुत घिर रहे हर तरफ
तुम शमां रौशनी की लिये जा रहे॥
यूँ सवालों की कोई कमी तो नहीं
पाप हम जाने क्या-क्या किये जा रहे॥
रात है खूबसूरत बहुत क्या करें
चाँदनी में हुए गुम दिए जा रहे॥
हैं दरारें जमीं में बहुत पड़ गयीं
लब किसानों की लेकिन सिये जा रहे॥
हो रहा अब प्रदूषण सहन ही नहीं
साँस हैं विष भरी हम लिये जा रहे॥