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आज घिरे हैं बादल, साथी / हरिवंशराय बच्चन

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आज घिरे हैं बादल, साथी!

भरा हृदय नभ विगलित होकर
आज बिखर जाएगा भूपर,
चार नयन भी साथ गगन के आज पड़ेंगे ढल-ढल, साथी!
आज घिरे हैं बादल, साथी!

आँसू का बल हमें कभी था
आँचल गीला किया जभी था
जग जीवन की सब सीमाएँ ढहीं-बहीं थीं गल-गल, साथी!
आज घिरे हैं बादल, साथी!

अब आँसू उर ज्वाल बुझाते
तो भी हम कुछ सुख पा जाते!
इन जल की बूँदों से उर के घाव उठेंगे जल-जल, साथी!
आज घिरे हैं बादल, साथी!