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आज जन्म दिन है दादी का / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
धूम मची है सारे घर में।
बच्चों के गाने इक स्वर में।
रम्मी तबला बजा रही है।
पम्मी घर को सजा रही है।
झूम रहे हैं सब मस्ती में,
सब को ज्वर है उन्मादी का।
हँसती है मुस्काती दादी।
सब पर प्यार लुटाती दादी।
सत्तर पार हो गई फिर भी,
है गुलाब-सी पुलकित ताज़ी।
बच्चों ने भी घेर लिया है,
उन्हें सजाया शहज़ादी सा।
केक कटा है जन्म दिवस का।
देखो दादीजी का ठसका।
केक काटकर बाँट रही हैं।
हँसती हँसती डाँट रहीं है।
कहतीं आज, दिवस फिर आया,
धूम धड़क्का आज़ादी का।