भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आज जाने ये कैसा सितम हो गया / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आज जाने ये कैसा सितम हो गया
चोट दिल पे लगी नैन नम हो गया

देखती हूँ तुझे जब भी लगता है ये
रात को रोशनी का भरम हो गया

चुभ रही थी नज़र इस क़दर बेतरह
वो तो घूँघट का मुझ पे करम हो गया
 
वक्त बहता गया उम्र ढलती गयी
जिंदगी का तराना नरम हो गया

देख तू ने लिया जब नज़र भर मुझे
मुश्किलें थम गयीं दर्द कम हो गया

रात पलकों पे ही है गुजरने लगी
ख़्वाब आता नहीं बेशरम हो गया

बीत जायेगी यूँ ही मेरी जिंदगी
बस मिलेगा न तू ये ही ग़म हो गया