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आज जो लगती फकीरों की दुआ मेरी ग़ज़ल / अमरेन्द्र

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आज जो लगती फकीरों की दुआ मेरी गजल
एक दिन होकर रहेगी ही दवा मेरी गजल

वाहवाही-फब्तियाँ कुछ और क्या इसके सिवा
जोड़ कर देखो कि तुमको क्या मिला मेरी गजल

ये भले भूखे हों नंगे दिल के लेकिन साफ हैं
इस गली के आदमी से दिल लगा मेरी गजल

आज तक रोते ही तुमने जिन्दगी काटी-कटी
अब जमाने को हँसाओ, मुस्करा मेरी गजल

हिन्दी या उर्दू गजल मेरी गजल को मत कहो
राम-लक्ष्मण मीर, कासिम, मुस्तफा मेरी गजल

कल विपक्षी थे तो लगती थी यही संजीविनी
आज उनको लग रही है हादसा मेरी गजल

अब यहाँ पर मजमा वाले तालियाँ पिटवाएंगे
चल यहाँ से बोरिया-बिस्तर उठा मेरी गजल

फिर जरा धड़के मेरा दिल फिर जरा आँखें हो नम
फिर उसी दिन का जरा चर्चा चला मेरी गजल

क्या कहीं अमरेन्द्र से बातें हुईं फिर राह में
इस तरह बेचैन क्यों हो, क्या हुआ मेरी गजल।