भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज तुझे क्यूँ चुप सी लगी है / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
आज तुझे क्यूँ चुप सी लगी है
कुछ तो बता क्या बात हुई है
आज तो जैसे सारी दुनिया
हम दोनों को देख रही है
तू है और बे-ख़्वाब दरीचे
मैं हूँ और सुनसान कली है
ख़ैर तुझे तो जाना ही था
जान भी तेरे साथ चली है
अब तो आँख लगा ले 'नासिर'
देख तो कितनी रात गई है।