आज तुम्हारा अलबम देखा / कमलेश द्विवेदी
आज तुम्हारा अलबम देखा सारे चित्र मनोरम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।
पहला चित्र कि जिसमें तुम हो
सागर तट पर खड़े किनारे।
लहरें तुमको भिगो रही हैं
कितने सुन्दर दिखें नजारे।
लगता इन लहरों से हम भी भीगे आज झमाझम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।
चित्र दूसरा है जिसमें तुम
सुना रहे हो गीत तुम्हारा।
बजा रहे हैं लोग तालियाँ
गीत लग रहा सबको प्यारा।
गीत तुम्हारा है पर लगता हम ही उसकी सरगम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।
पहले से लेकर अंतिम तक
चित्र लगे सब हमको प्यारे।
सब चित्रों में हमने देखा
यों ही ख़ुद को साथ तुम्हारे।
चित्रों में साकार दिखो तुम हम यादों की अलबम हैं।
कहीं नहीं हैं हम चित्रों में फिर भी लगता है-हम हैं।