आज तुम्हारी स्नेहल सुध भर मैं भी दीपक बाल रहा हूँ!
जग ने जो दी है अँधियारी,
कैसे हो जाए उजियारी!
छाती में छवि की बाती धर नेह-नयन भर ढाल रहा हूँ!
मैं जो अपने से ऊबा हूँ,
घबराकर तुममें डूबा हूँ;
मत पूछो, इस अपनेपन से मैं कितना बेहाल रहा हूँ!
सोने की यह रेख दिये की
जाहिर मेरी देख, हिये की,
फिर भी, जग क्या जान सकेगा, मैं दिल में क्या पाल रहा हूँ!