आज तुम रुक जाओ वक़्त को जाने दो / नंदा पाण्डेय
आज तुम रुक जाओ
वक़्त को जाने दो...
देखो आज सिसक रही है
मेरे अंतर की कविता
अंकित कर दो
मेरी कविता पर
अपने अंतर-भावों
की भाषा को
रुक जाने दो आज
अपनी हंसी को
मेरे रुदन पर
रुक जाओ
मेरे वर्तमान में
बन कर
चिर-अतीत तुम
आज तुम रुक जाओ
वक़्त को जाने दो
आ जाओ मुस्कुराते हुए
सारी दूरियों को पार करके
रुक जाओ आज
सिंधु से भी विशद
नीर से भी तरल
अश्रु बन कर
मेरी आँखों में
मौन को मुखरित
हो जाने दो
फुट जाने दो
रागिनी के चंद छंद
आज तुम रुक जाओ
वक़्त को जाने दो
देखो आज संवार रही
व्यथा मेरी
मेरा ही आँचल
सहला कर मन की
हर कंपन को
बन जाओ मेरा
विश्वास संबल
रुक जाओ मेरी
करुणा भरी गाढ़ी
मुस्कान की ओट में
प्रीत बन बरस जाओ
स्नेह-स्वाति बनकर
रुक जाओ आज तुम
मेरा 'अभिमान' बन कर
आज तुम रुक जाओ
वक़्त को जाने दो !!