भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आज तेरा वह शहर याद आया / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
आज तेरा वह शहर याद आया
जुल्म-आतंक का डर याद आया।
देश अपना तो नहीं ऐसा था
प्रेम-सौहार्द्र का घर याद आया।
तीरगी में ही भटकते थे हम
यातनाओं का सफ़र याद आया।
एक उतरा था फरिश्ता भू पर
उनका प्यारा वह असर याद आया।
लाओ हम भी तो उठा कर पी लें
आज मीरा का ज़हर याद आया।
कितना सहता है विरोधी को वह
सच में फौलादे-जिगर याद आया