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आज तो / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
आज तो चली अजब हवा
दब गया दमन का दबदबा,
भय विहीन,
है ज़मीन !
मात चाँद की अरे कला ;
शक्ति गीत गा रहा गला,
हर मलीन
है नवीन !
रूप है समाज का अजब,
हर मनुष्य है स्वतंत्रा अब,
ना अधीन
है न दीन !